Sunday, February 8, 2009

गंगा नदी भी चढ़ी कांग्रेस सरकार की वोट बैंक नीति की भेट…...................


जिस प्रकार भागीरथ ने गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाने के लिए जोर लगाया था। उसी प्रकार केंद्र सरकार भी गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्रयास कर रही है। सरकार ने भारत की पवित्र नदी की सुध लेते हुए इसे राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया। अब देश में गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने और अन्य समस्याओं से निजात दिलाने के लिए एक गंगा नदी प्राधिकरण बनेगा। इसके अध्यक्ष खुद प्रधानमंत्री होगें। जिन राज्यों से होकर गंगा गुजरती है उसके मुख्यमंत्री इसके सदस्य होगें। इस नदी की साफ-सफाई का खर्चा केंद्र सरकार वहन करेगी।कांग्रेस सरकार ने लोगों का दिल जितने का अच्छा मौका देखा है। छह
राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में हुए विधानसभा चुनावों तथा नजदीक आ रहे लोकसभा चुनावों के चलते कांग्रेस सरकार ने यह चाल चली है। गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के पीछे राजनीति का खेल है। यह कांग्रेस सरकार की वोट वटोरने की निती के अन्तर्गत हुआ है। गंगा नदी सदियों से भारत की शान रही है। यह हिन्दू धर्म की पवित्र नदी मानी जाती है। हिन्दुओं का दिल जितने के लिए सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया है। गंगा नदी तो वैसे ही हर भारतीय की नदी है। गंगा नदी को बचाने के लिए अनेक वर्षों से आंदोलन चल रहे हैं। इसमे गंगा बचाओ आंदोलन मुख्य रहा। तब कांग्रेस सरकार सक्रिय क्यों नही हुई। 1985 में शुरू हुए गंगा कार्य योजना को क्यों नहीं सुधारा गया। इस योजना पर अरबों रुपये लगने के बाद भी गंगा मैली बनी हुई है। आज चुनावों के नजदीक आने पर ही सरकार को गंगा कैसे याद आई है। यह हिन्दुओं के दिल मे कांग्रेस सरकार की अच्छी छवि बनाने की अच्छी तरकीब है। समय-समय पर गंगा को बचाने के लिए सामाजिक संगठनों ने अनेक बार रुचि दिखाई। उससे न तो राजनीतिक तंत्र झकझोरा जा सका और न ही प्रशासन तंत्र। इस बात को देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि यह वोट बैंक की नीति से वोट बटोरने की चाल है। ऐसी कोशिशें पहले भी कई बार की जा चुकी है। परन्तु क्या प्रदूषण मुक्त हो सकी। हमेशा योजनायें लागू कर दी जाती है। परन्तु उन पर अमल नहीं किया जाता। गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित करके गंगा नदी प्राधिकरण बनाने का फैसला स्वागत योग्य है, परन्तु क्या इसकी कोई गारन्टी कि इसका वैसा नहीं होगा, जैसा 1985 में शुरू की गई गंगा योजना का हुआ। 1985 में शुरू की गई गंगा कार्य योजना में अब तक दो हजार करोड़ रुपये और 23 साल बीत चुके हैं, परन्तु गंगा नदी वैसे की वैसे ही मैली बनी हुई है। कुछ स्थानों पर तो इतनी दूषित हो गई कि पानी पीने योग्य तो दूर, नहाने और सिंचाई करने योग्य भी नहीं रहा। तमाम रोक और विरोध के बावजूद इसमें कारखाने विषाक्त पदार्थ डालने मे लगे हैं। गंगा नदी को प्रदूषित करने में न केवल कारखानों का ही हाथ है, बल्कि इसके लिए हमारा धर्म और संस्कृति भी जिम्मेदार हैं। गंगा नदी को जन जागरुकता और कड़े कानून के जरिए ही राष्ट्रीय प्राधिकरण गंगा फिर से पवित्र बना सकता है, सिर्फ कागजी घोषणाओं से कुछ नहीं होगा।