Sunday, May 31, 2009

मतदाताओं में झलकी जागरुकता............


देश मे 15लोकसभा का परिणाम आ चुका है। देश के मतदाताओं ने समाचार पत्रों, टी.वी. चैनलों, राजनीतिक विश्लेषकों और भविष्य वक्ताओं के अनुमानों को ध्वस्त कर दिया हैं। तीसरा मोर्चा, और न जाने कितने नेता जो सरकार बनाने और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ताज पहने बैठने के सपने संजोये थे अब उन्हे चेहरा छिपाने को भी जगह नही मिल रही। सबसे बड़ी खुशी की बात तो यह है कि भारत के जागरुक मतदाताओं ने जाति और धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर अपने वोट का प्रयोग किया है। अब यूपीए की सरकार बनी है जिससे आशा है कि यह काफी हद तक स्थाई रहेगी और चुनावों से पहले जनता से किए वादो को पुरा करने की कोशिश करेगी।
मतदातओ की जगरुकता ने उन नेताओं और दलों का भ्रम तोड दिया जो अपने आप को जातियों के सबसे बडे हितैषी समझते थे या जो जातीवाद के आधार पर वोट बटोरते थे। जनता ने धार्मिक भावनाएं भड़का कर जीतने वालों और धर्म या जाति के सहारे राजनीति करने वालों का सफाया कर दिया। नेता होने की धोंश मे सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग करने वालों को भी जनता ने किनारे कर दिया। जनता के वोट की बदौलत सरकारों में बाहर से या भीतर से समर्थन देकर ब्लैकमेलिंग की राजनीति करने वाले नेताओं को भी भारत के मतदाताओं ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है और अब वे नेता औऱ उनके समूह बचते फिर रहे हैं।
चुनाव परिणामों से पता चलता है कि मतदाता कट्टरतावाद और साम्प्रदायिकता के विरुद्ध हैं। कट्टरतावादी चाहे किसी भी धर्म से सम्बन्धित हो वो हिन्दू हो या मुसलमान हो या इनमें से किसी वर्ग को सपोर्ट करता हो, मतदाताओं उन्हें भी नकार चुके हैं। मतदातओं ने उस दल को अपना मत दिया है जो उनके लिए विकास के कार्य कर सके। यूपीए सरकार ने पिछले 5 सालों में बहुत ही जनहीत के कार्य किऐ हैं इसमे शक की कोई गुंजाईश नही है। इसलिए कांग्रेस इस चुनाव में सबसे बडे़ दल के रुप में प्रकट हुई हैं।
इन चुनाव परिणामों से पता चलता है कि नेताओं और दलों को अपनी विचारधारा और नीतियों को बदलना पड़ेगा। उन्हे अपनी नीतिया जनता के हित में बनानी होगी तभी मतदाताओं की नज़रों मे अपनी छवी अच्छी बना सकते हैं। अन्यथा जनता यूं ही उन्हे नकारती रहेगी। अब समय आ गया है कि राजनीतिक पार्टीयां भारत देश के मतदाताओं को समझें।

हार बन सकती है एनडीए में टूट का कारण......




लोकसभा चुनावों मे हार के बाद एनडीए के नेता हार का ठिकरा एक दूसरे के सिर पर फोड़ने में लगे है मोटे तौर पर हार के लिए पार्टी की आंतरिक कलह, उम्मीदवारों का गलत चयन, गुटबाजी और वरुण गाँधी के कथित हिंदुत्व को जिम्मेदार माना जा रहा हैं। सवाल आडवाणी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारी को लेकर भी उठ रहे है। वैसे आखिर मे पार्टी की पूरी कमान तो आडवाणी के करीबी लोगो के हाथ मे ही थी लेकिन हार की जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नही है। राजस्थान,एम.पी. यूपी,महाराष्ट्र और उत्तराखंड में आशा से कम मिली सीटों ने तो भाजपा का गणित ही हिला के रख दिया। इससे एनडीए मे टूट का खतरा पैदा हो गया। पार्टी का हर कार्यकर्ता हार के अलग-अलग कारण गिनाने मे लगे हैं सार्वजनिक रुप मे माना जा रहा है कि पार्टी की अंदरुनी कलह पार्टी को ले डूबी। राजस्थान,दिल्ली एम.पी. यूपी,महाराष्ट्र और उत्तराखंड में उम्मीदवारों के चयन मे काफी खिचतान हुई थी। इन राज्यों मे पार्टी को उम्मीद के मुताबिक सीटें नही मिल पाई। कुछ नेताओं का कहना है कि भले ही पीलीभीत से वरुण गाँधी जीत गये हो लेकिन उनके भडकाऊ भाषणो का पार्टी को बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पडा। पार्टी के चुनाव प्रचार पर भी अंगुली उठाई जा रही है। प्रचार अभियान मे ये कहना कि मनमोहन सिंह कमजोर प्रधानमंत्री है इसे गलत बताया गया है। पार्टी मे शुरु से ही फुट थी फूट का आलम ये था कि चुनावों से पहले ही नेताओं न कानाफुसी करने मे लग गये थे अब विपक्ष का नेता कौन होगा आडवाणी ने तो विपक्ष का नेता के पद के लिए मना कर दिया है। और तो और ये देखो छतीसगढ के बस्तर के संसदीय क्षैत्र से लगातार चौथी बार जीते भाजपा के सांसद बलिराम कश्यप ने कहा कि आडवाणी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रुप मे उतारना ही पार्टी की सबसे बड़ी गलती थी। बहरहाल भाजपा के कई नेताओं की नज़रे विपक्ष के नेता बनने पर टिकी है। इस दौड मे राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, मुरली जोशी और जसवंत सिंह शामील है। इससे स्पष्ट होता है कि भाजपा मे एक ओर घमासान होने वाला है वो है विपक्ष के नेता का चुनाव।

Friday, May 1, 2009

रोड़ पर देश के नेता..........................




जब आप रोड पर लोगों का हुजुम बैनरों के साथ देखें तो ये न सोचें कि कोई आंदोलन या विरोध हो रहा है बल्कि पॉच साल के बाद अपने बिल से निकले हमारे देश के नेता हैं। ये नेता बरसाती मेंढक हैं जो कि चुनावी रुपी बरसात के वक्त टर्र-टर्र करते बाहर निकलते है। देश हो रहे लोकसभा चुनावों के कारण देश के नेता सक्रिय हो गए हैं। आज उन्हें खाना खाने तक को समय नहीं है। आज हर गली के नुक्कड़ पर नेताओं द्वारा घोषणाओं करते देखा जा सकता है। वोटरो के घरो पर वोटों के लिए भीख मांगते देखा जा सकता है। अगर हमारे देश के नेता वोटों के बाद भी ऐसे ही सक्रिय बने रहें तो इन्हें सफेद कपड़ों में लिपटकर अपना दामन छुपाने की जरूरत नहीं होगी। अगर ये नेता हमेशा ऐसे ही बने रहे तो वो दिन दूर नहीं जिसके बाद हमें यह कह कर गर्व होगा कि हम विश्व की एकमात्र महान शक्ति भारत के नागरिक हैं।