Thursday, April 23, 2009

चुनावों के मौंके पर भी भुले यमुना को ...............


लोकसभा चुनाव रुपी युद्ध मे कुदे हुए सभी दलो के प्रत्याशी अपने भाषणों में एक दुसरे को गलत साबित करने मे जुटे हुए हैं। लेकिन चुनावों में असली मुद्दो का गायब हो रहे हैं। राजधानी में पिछले विधानसभा चुनावों का मुद्दा विकास था। वही इस बार संसदीय चुनाव में पार्टीयों के पास कोई बड़ा मुद्दा नही है। वैसे तो दिल्ली में कई ऐसी समस्यायें है जो राजनीतिक पार्टीयों के एजेंडे में सबसे उपर होनी चाहीए थीं, लेकिन किसी भी दल के द्वारा उनकी सुध न ली जा रही हैं। इन चुनावो में यमुना नदी का मुद्दा भी प्रमुख है खत्म होने की कगार पर खड़ी है। कभी पूजे जाने वाली यमुना, आज नदी की बजाय बदबुदार नाला प्रतित होती है। इस सुध लेते हुए कई सरकार ने इसकी सफाई के लिए कई योजनाएं तो बनाई लेकीन उन्हे गम्भीर तरिके से नही लेने के कारण यमुना जैसे की तैसे बनी हुई है। इन योजनाओं पर कई हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाने के बावजूद यमुना और प्रदुषित बनी रही।
यहा प्रश्न यह खड़ा होता है कि आखिर जो नदी देश की राजधानी दिल्ली के लिए जीवनदयिनी है उसके प्रति जागरुकता क्यों नहीं दिखाई गई? चुनाव के मौके पर भी राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों के एजेंडें मे यह क्यो नही हैं? परन्तु कांग्रेस सरकार ने गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित करके लोगो का दिल जितने की कोशिश तो की लेकिन उनकी योजना सफल होती नही दिखी। अत: उन्होने यमुना नदी को मुद्दा बनाना उचित नही समझा। इस प्रश्न का जवाब देने के लिए कौन जिम्मेदार है कि हजारों करोड़ रुपयें खर्च करने के बावजूद यमुना जस की तस क्यों बनी हुई हैं? यमुना को प्रदुषित करने वाले नालों के मुहाने पर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजना पर अब तक अमल क्यो नहीं किया? केंद्रिय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट ने यह बताया कि यमुना को प्रदूषित करने में सबसे बड़ी भुमिका दिल्ली की हैं, इसके बावजुद भी इस पर उचित ध्यान क्यों नही दिया गया? यमुना नदी को प्रदूषित करने के लिए हमारा धर्म और संस्कृति भी जिम्मेदार हैं। अब चुप बैठने का समय नही रहा बल्कि लोगों को जागरुकता का परिचय देते हुए प्रत्याशियों से यमुना को प्रदुषण मुक्त करने के बारे में न केवल सवाल पूछे बल्कि उसे प्रदुषण मुक्त कराने का शपथ पत्र भी। अब हमे हमारी जिवनदायिनी को बचाना है, ना कि हाथ के उपर हाथ रख कर बैठने का है।

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