Sunday, August 9, 2009

पॉलिटिक्स मिन्स कर लो देश मुठ्ठी में...........


राजनीति का अर्थ है राजनेताओं द्वारा अपनी मर्जी से देश को चलाना,राजनीति के इस अर्थ का कहीं वर्णन नही किया गया बल्कि ये भारत के राजनेताओं की सोच से बनाया गया है। भारत के राजनेताओ को एक बार गद्दी मिल जाये बस फिर क्या है फिर तो वो देश को चलाने लग जाते हैं। ये राजनेता देश के प्रशासन को अपने अनुसार चलाने की कोशिश करते है। देश के प्रशासनिक अधिकारियों को अपनी मुठ्ठी में बंद करके रखना चाहते है। और उन्हे अपने कहे के अनुसार चलाते है और जो अधिकारी इनके कहे के अनुसार नही चलते उनके साथ ये कुछ भी कर सकते है। ये उनका तबादला कराने ज़रा भी समय नही गंवाते, कई बार तो ये नेता उन अधिकारियों के साथ मारपीट तक कर देते है। एक ऐसा ही मामला 27 जुलाई 09 को उत्तरप्रदेश के वाराणसी में घटा जहां पर समाजवादी पार्टी के विधायक एडीएम ऑफिस अपना हैसियत पत्र बनवाने गये थे। विधायक अपनी मर्जी के अनुसार अपना हैसियत पत्र बनवाना चाहता था लेकिन एडीएम आर.के.सिंह के मना करने पर वो भड़क गया। फिर क्या था वो एडीएम के साथ गाली गलौच करने के साथ ही मारपीट की। दूसरा किस्सा आन्ध्राप्रदेश का एक सांसद का है। जिसने की एक ग्रामीण बैंक के मैनेजर पर इसलिए थप्पड़ मारा क्योंकि मैनेजर ने सांसद के कहे के अनुसार दलित श्रण जारी नही किया।
वही बात देश के सिस्टम को मनमर्जी से चलाने की, की जाये तो आपको शायद याद होगा कि कुछ महीनों पहले पटना में एक राजनेता को हवाई अड्डा पहुंचने में देर हो गई थी और फ्लाईट ने उसके पहुंचने से पहले ही उडान भर ली थी। जिसको लेकर के राजनेता ने सम्बंधित एयरलाईंस के मैनेजर से बदतमिजी करने लगा और बात हाथापाई तक पहुंच गई थी। ये कोई नई बात नही है ऐसा तो कई बार होता है कि नेता फ्लाईटों को प्रतिक्षा करवाते हैं। अनेको बार हवाई जहाजें देर से उडान भरती हैं। आप अंदाजा लगा सकते है कि बाकि लोग जो फ्लाइट से सफर कर रहे है उनको कितना नुक्सान हो रहा होगा। छोटी मोटी घटनाएं तो आप कही भी देख सकते है कि राजनेता किस प्रकार से कानुन तोड़कर के अपनी जिन्दगी जीते हैं। कही दूर जाने की जरुरत नही आपने कई बार देखा होगा कि किस प्रकार से हम किसी चौराहे पर रेड लाईट हो जाने पर खड़े रहते है और नेता की गाडी पीछे से आती है और रेड लाईट होने के बावजूद भी उसकी गाडी निकल जाती है। उस वक्त कोई पुलिस वाला उसकी गाडी को ना तो रोकता और ना ही उसका चालान काटा जाता। एक ऐसा ही मामला ओर है एक सांसद ने हाल ही के दिनों में प्रधानमंत्री के मोटरसाईकिल के काफिले में घुस कर के सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश की। फिर उन्होने तर्क दिया कि उसे भी संसद में समय पर पहुंचने का उतना ही हक है जितना देश के प्रधानमंत्री को। प्रधानमंत्री भी तो मूल रुप से एक सांसद ही है। अगर ये कहा जाये कि देश के सिस्टम को तोड़ने वाले देश के नेता है तो कोई गलत नही होगा।

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