वही बात देश के सिस्टम को मनमर्जी से चलाने की, की जाये तो आपको शायद याद होगा कि कुछ महीनों पहले पटना में एक राजनेता को हवाई अड्डा पहुंचने में देर हो गई थी और फ्लाईट ने उसके पहुंचने से पहले ही उडान भर ली थी। जिसको लेकर के राजनेता ने सम्बंधित एयरलाईंस के मैनेजर से बदतमिजी करने लगा और बात हाथापाई तक पहुंच गई थी। ये कोई नई बात नही है ऐसा तो कई बार होता है कि नेता फ्लाईटों को प्रतिक्षा करवाते हैं। अनेको बार हवाई जहाजें देर से उडान भरती हैं। आप अंदाजा लगा सकते है कि बाकि लोग जो फ्लाइट से सफर कर रहे है उनको कितना नुक्सान हो रहा होगा। छोटी मोटी घटनाएं तो आप कही भी देख सकते है कि राजनेता किस प्रकार से कानुन तोड़कर के अपनी जिन्दगी जीते हैं। कही दूर जाने की जरुरत नही आपने कई बार देखा होगा कि किस प्रकार से हम किसी चौराहे पर रेड लाईट हो जाने पर खड़े रहते है और नेता की गाडी पीछे से आती है और रेड लाईट होने के बावजूद भी उसकी गाडी निकल जाती है। उस वक्त कोई पुलिस वाला उसकी गाडी को ना तो रोकता और ना ही उसका चालान काटा जाता। एक ऐसा ही मामला ओर है एक सांसद ने हाल ही के दिनों में प्रधानमंत्री के मोटरसाईकिल के काफिले में घुस कर के सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश की। फिर उन्होने तर्क दिया कि उसे भी संसद में समय पर पहुंचने का उतना ही हक है जितना देश के प्रधानमंत्री को। प्रधानमंत्री भी तो मूल रुप से एक सांसद ही है। अगर ये कहा जाये कि देश के सिस्टम को तोड़ने वाले देश के नेता है तो कोई गलत नही होगा।
Sunday, August 9, 2009
पॉलिटिक्स मिन्स कर लो देश मुठ्ठी में...........
वही बात देश के सिस्टम को मनमर्जी से चलाने की, की जाये तो आपको शायद याद होगा कि कुछ महीनों पहले पटना में एक राजनेता को हवाई अड्डा पहुंचने में देर हो गई थी और फ्लाईट ने उसके पहुंचने से पहले ही उडान भर ली थी। जिसको लेकर के राजनेता ने सम्बंधित एयरलाईंस के मैनेजर से बदतमिजी करने लगा और बात हाथापाई तक पहुंच गई थी। ये कोई नई बात नही है ऐसा तो कई बार होता है कि नेता फ्लाईटों को प्रतिक्षा करवाते हैं। अनेको बार हवाई जहाजें देर से उडान भरती हैं। आप अंदाजा लगा सकते है कि बाकि लोग जो फ्लाइट से सफर कर रहे है उनको कितना नुक्सान हो रहा होगा। छोटी मोटी घटनाएं तो आप कही भी देख सकते है कि राजनेता किस प्रकार से कानुन तोड़कर के अपनी जिन्दगी जीते हैं। कही दूर जाने की जरुरत नही आपने कई बार देखा होगा कि किस प्रकार से हम किसी चौराहे पर रेड लाईट हो जाने पर खड़े रहते है और नेता की गाडी पीछे से आती है और रेड लाईट होने के बावजूद भी उसकी गाडी निकल जाती है। उस वक्त कोई पुलिस वाला उसकी गाडी को ना तो रोकता और ना ही उसका चालान काटा जाता। एक ऐसा ही मामला ओर है एक सांसद ने हाल ही के दिनों में प्रधानमंत्री के मोटरसाईकिल के काफिले में घुस कर के सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश की। फिर उन्होने तर्क दिया कि उसे भी संसद में समय पर पहुंचने का उतना ही हक है जितना देश के प्रधानमंत्री को। प्रधानमंत्री भी तो मूल रुप से एक सांसद ही है। अगर ये कहा जाये कि देश के सिस्टम को तोड़ने वाले देश के नेता है तो कोई गलत नही होगा।
Wednesday, June 24, 2009
जवान करो भारत को….........
अगर भारत के युवाओं से ये पूछा जाए, कि आप क्या बनना चाहते हो तो अधिकतर का जवाब ये ही होगा कि मैं एक डॉक्टर, इंजीनियर या एक अच्छा बिजनेस मैन बनना चाहता हूँ। जब इनसे पूछा जाये कि तुम डॉक्टर या बिजनेस मैन ही क्यों बनना चाहते हो तो उनका जवाब होगा कि मैं जनता की सेवा करना चाहता हूँ। देश के विकास मे योगदान देना चाहता हुं। लेकिन मैं इनकी बातों से सहमत नही हूँ। मै ये सोच कर परेशान हूँ, क्या लोग देश की सेवा एक अच्छा राजनेता बनके नही कर सकते है। मेरा हमेशा से ये ही प्रश्न रहा है कि एक युवा भारतीय डॉक्टर क्यों बनना चाहता है राजनेता क्यों नही।
आज देश का हर नागरिक जानता है कि हमारे भारत देश कि राजनीति बहुत गंदी हो चुकी हैं, लेकिन इस गंदी राजनीति को सुधारने के लिए कोई कदम नही उठाना चाहता। अगर आप कहते है कि हमारे देश की राजनीति गंदी है तो आपको ये कहने का कोई हक नही क्योंकि आपको पता होना चाहिए कि देश की राजनीति को गंदी करने के लिए ज़िम्मेदार भी हम ही हैं,और कोई नहीं। आज स्कुलों में बच्चों को एक अच्छा डॉक्टर, इंजीनियर, एक बिजनेसमैन बनने की शिक्षा दी जाती है, एक राजनेता बनने की क्यों नही। अगर हमे अपने देश की राजनीति सुधारनी है, तो आज हमारे देश में 70 फीसदी लोग 35 वर्ष से कम उम्र के है। ये आबादी बहुत कुछ कर सकती है अगर इन्हे सही गाईडेंन्स मिले तो क्योंकि यह युवा पीढ़ी पुराने आग्रहों और रूढि़यों से मुक्त है। यह आबादी सूचना क्रांति और ग्लोबलाइजेशन के दौर में पैदा हुई है, इसलिए इनकी सोच का अलग है। यह पीढ़ी पॉलिटिक्स और लीडरशिप के बारे में पुरानी पीढ़ी की राय थी उनसे अलग राय रखती है। ये आबादी बूढें हो चुके लालकृष्ण आडवाणी जैसे भेड़ियों की बजाय जवान शेर राहुल गांधी से कुछ ज्यादा उपेक्षा रखती है।
भारत देश के विकास का सबसे शक्तिशाली साधन एक युवा है।...भारतीय राजनीति की विंडबना है कि उच्च पदों की चढ़ाई एवरेस्ट की चढ़ाई करने जैसा है। जब तक चोटी के नजदीक पहुँचते हैं शरीर जर्जर हो जाता है। जब वर्तमान समय में हमारे देश की सत्तर प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम की है तो हमारे देश को एक युवा राष्ट्र की संज्ञा दी जा रही है।
Monday, June 1, 2009
संबंध सुहाना है
है प्रेम से जग प्यारा, सुंदर है सुहाना है जिस ओर नज़र जाए, बस प्रेम-तराना है बादल का सागर से, सागर का धरती से धरती का अंबर से, संबंध सुहाना है तारों का चंदा से, चंदा का सूरज से सूरज का किरणों से, संबंध सुहाना है सखियों का राधा से, राधा का मोहन से मोहन का मुरली से, संबंध सुहाना है पेड़ों का पत्तों से, पत्तों का फूलों से फूलों का खुशबू से, संबंध सुहाना है जन-जन में प्रेम झलके, हर मन में प्रेम छलके मन का इस छलकन से, संबंध सुहाना है।
लीला तिवानी
Sunday, May 31, 2009
मतदाताओं में झलकी जागरुकता............
मतदातओ की जगरुकता ने उन नेताओं और दलों का भ्रम तोड दिया जो अपने आप को जातियों के सबसे बडे हितैषी समझते थे या जो जातीवाद के आधार पर वोट बटोरते थे। जनता ने धार्मिक भावनाएं भड़का कर जीतने वालों और धर्म या जाति के सहारे राजनीति करने वालों का सफाया कर दिया। नेता होने की धोंश मे सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग करने वालों को भी जनता ने किनारे कर दिया। जनता के वोट की बदौलत सरकारों में बाहर से या भीतर से समर्थन देकर ब्लैकमेलिंग की राजनीति करने वाले नेताओं को भी भारत के मतदाताओं ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है और अब वे नेता औऱ उनके समूह बचते फिर रहे हैं।
चुनाव परिणामों से पता चलता है कि मतदाता कट्टरतावाद और साम्प्रदायिकता के विरुद्ध हैं। कट्टरतावादी चाहे किसी भी धर्म से सम्बन्धित हो वो हिन्दू हो या मुसलमान हो या इनमें से किसी वर्ग को सपोर्ट करता हो, मतदाताओं उन्हें भी नकार चुके हैं। मतदातओं ने उस दल को अपना मत दिया है जो उनके लिए विकास के कार्य कर सके। यूपीए सरकार ने पिछले 5 सालों में बहुत ही जनहीत के कार्य किऐ हैं इसमे शक की कोई गुंजाईश नही है। इसलिए कांग्रेस इस चुनाव में सबसे बडे़ दल के रुप में प्रकट हुई हैं।
इन चुनाव परिणामों से पता चलता है कि नेताओं और दलों को अपनी विचारधारा और नीतियों को बदलना पड़ेगा। उन्हे अपनी नीतिया जनता के हित में बनानी होगी तभी मतदाताओं की नज़रों मे अपनी छवी अच्छी बना सकते हैं। अन्यथा जनता यूं ही उन्हे नकारती रहेगी। अब समय आ गया है कि राजनीतिक पार्टीयां भारत देश के मतदाताओं को समझें।
हार बन सकती है एनडीए में टूट का कारण......
Friday, May 1, 2009
रोड़ पर देश के नेता..........................
Thursday, April 23, 2009
चुनावों के मौंके पर भी भुले यमुना को ...............
यहा प्रश्न यह खड़ा होता है कि आखिर जो नदी देश की राजधानी दिल्ली के लिए जीवनदयिनी है उसके प्रति जागरुकता क्यों नहीं दिखाई गई? चुनाव के मौके पर भी राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों के एजेंडें मे यह क्यो नही हैं? परन्तु कांग्रेस सरकार ने गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित करके लोगो का दिल जितने की कोशिश तो की लेकिन उनकी योजना सफल होती नही दिखी। अत: उन्होने यमुना नदी को मुद्दा बनाना उचित नही समझा। इस प्रश्न का जवाब देने के लिए कौन जिम्मेदार है कि हजारों करोड़ रुपयें खर्च करने के बावजूद यमुना जस की तस क्यों बनी हुई हैं? यमुना को प्रदुषित करने वाले नालों के मुहाने पर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजना पर अब तक अमल क्यो नहीं किया? केंद्रिय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट ने यह बताया कि यमुना को प्रदूषित करने में सबसे बड़ी भुमिका दिल्ली की हैं, इसके बावजुद भी इस पर उचित ध्यान क्यों नही दिया गया? यमुना नदी को प्रदूषित करने के लिए हमारा धर्म और संस्कृति भी जिम्मेदार हैं। अब चुप बैठने का समय नही रहा बल्कि लोगों को जागरुकता का परिचय देते हुए प्रत्याशियों से यमुना को प्रदुषण मुक्त करने के बारे में न केवल सवाल पूछे बल्कि उसे प्रदुषण मुक्त कराने का शपथ पत्र भी। अब हमे हमारी जिवनदायिनी को बचाना है, ना कि हाथ के उपर हाथ रख कर बैठने का है।
Thursday, March 26, 2009
आज की राजनीति के स्वरुप को बदलने का संकल्प
आज की राजनिती पहले पहले जैसी राजनिती नही है ये समय के साथ राजनिती का बदला रुप है। इसके लिए पार्टी जिम्मेदार नही है ये लोगों की सोच मे बदलाव के कारण हुआ है। नेताओं ने अपराधीयों से पैसे लेकर उन्हें टिकट दिये और अपराधी अपने अपराध को छिपाने के लिए नेता बने और जब एक शुरुआत की तो दुसरे के लिए मजबुरी बनने लगी। अपराधीयों ने खुद को बचाने के लिए नेता रुपी खाल पहनी और जो नेता थे वे खुद के नेता होने की तैश में अपराधी बन गए। इसे राजनीती का बाजारीकरण कहे तो कोई दो राय नही हैं।
केवल राजनीति मे ही अपराध नही है, अपराध तो पुरे समाज में फैला है लेकिन राजनिती में अपराधीकरण को कुछ अलग नजर से इसलिए देखा जाता है क्योंकि यह समाज के चुने हुए लोगों में है, जिनके हाथों मे समाज की कमान होती है। यह माना जाता है कि जनता अपराधियों को तब वोट देती है जब उनका विश्वास व्यवस्था पर से उठ जाये।
उन्हे लगता है कि अपराधी ही हमें न्याय दिला पाऐंगे और इसी बात से अपराधियों के हौसले बढ़ जाते है। आज से पांच साल पहले चुनाव आयोग ने राजनिती से अपराधीकरण खत्म करने के लिए कुछ उपाय सुझाऐं थें। उन उपायों पर उस समय सरकार ने विचार विर्मश किया और एक बिल तैयार किया। इस बिल में ये यह था कि अगर किसी व्यक्ति के ख़िलाफ तिन मुकदमें लंबित हों, तो वो चुनाव नहीं लड सकते लेकिन इस पर विचार विर्मश करने की बजाय इस पर राजनितीक दलों द्वारा सवालिया निशान लगा दिया। राजनितीक दल किसी व्यक्ति को महज सांसद होने के नाते गले लगाने के लिए बैचेन है तो ये उनके हित मे तो हो सकता है, लेकिन देश के लोकतांत्रिक भविष्य के लिए शुभ नही है। इसे शुभ बनाने की जिम्मेदारी जनता की है। इसके लिए कोई जंग नही लड़ना बस एक छोटा सा फैसला लेना होगा कि हम अपराधी हाथों मे देश मे न सौंपें।
Sunday, February 8, 2009
गंगा नदी भी चढ़ी कांग्रेस सरकार की वोट बैंक नीति की भेट…...................
राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में हुए विधानसभा चुनावों तथा नजदीक आ रहे लोकसभा चुनावों के चलते कांग्रेस सरकार ने यह चाल चली है। गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के पीछे राजनीति का खेल है। यह कांग्रेस सरकार की वोट वटोरने की निती के अन्तर्गत हुआ है। गंगा नदी सदियों से भारत की शान रही है। यह हिन्दू धर्म की पवित्र नदी मानी जाती है। हिन्दुओं का दिल जितने के लिए सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया है। गंगा नदी तो वैसे ही हर भारतीय की नदी है। गंगा नदी को बचाने के लिए अनेक वर्षों से आंदोलन चल रहे हैं। इसमे गंगा बचाओ आंदोलन मुख्य रहा। तब कांग्रेस सरकार सक्रिय क्यों नही हुई। 1985 में शुरू हुए गंगा कार्य योजना को क्यों नहीं सुधारा गया। इस योजना पर अरबों रुपये लगने के बाद भी गंगा मैली बनी हुई है। आज चुनावों के नजदीक आने पर ही सरकार को गंगा कैसे याद आई है। यह हिन्दुओं के दिल मे कांग्रेस सरकार की अच्छी छवि बनाने की अच्छी तरकीब है। समय-समय पर गंगा को बचाने के लिए सामाजिक संगठनों ने अनेक बार रुचि दिखाई। उससे न तो राजनीतिक तंत्र झकझोरा जा सका और न ही प्रशासन तंत्र। इस बात को देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि यह वोट बैंक की नीति से वोट बटोरने की चाल है। ऐसी कोशिशें पहले भी कई बार की जा चुकी है। परन्तु क्या प्रदूषण मुक्त हो सकी। हमेशा योजनायें लागू कर दी जाती है। परन्तु उन पर अमल नहीं किया जाता। गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित करके गंगा नदी प्राधिकरण बनाने का फैसला स्वागत योग्य है, परन्तु क्या इसकी कोई गारन्टी कि इसका वैसा नहीं होगा, जैसा 1985 में शुरू की गई गंगा योजना का हुआ। 1985 में शुरू की गई गंगा कार्य योजना में अब तक दो हजार करोड़ रुपये और 23 साल बीत चुके हैं, परन्तु गंगा नदी वैसे की वैसे ही मैली बनी हुई है। कुछ स्थानों पर तो इतनी दूषित हो गई कि पानी पीने योग्य तो दूर, नहाने और सिंचाई करने योग्य भी नहीं रहा। तमाम रोक और विरोध के बावजूद इसमें कारखाने विषाक्त पदार्थ डालने मे लगे हैं। गंगा नदी को प्रदूषित करने में न केवल कारखानों का ही हाथ है, बल्कि इसके लिए हमारा धर्म और संस्कृति भी जिम्मेदार हैं। गंगा नदी को जन जागरुकता और कड़े कानून के जरिए ही राष्ट्रीय प्राधिकरण गंगा फिर से पवित्र बना सकता है, सिर्फ कागजी घोषणाओं से कुछ नहीं होगा।